milap singh

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Monday, 23 September 2013

आँखों से बार- बार

काजल से काले पलकों के
किनारे न किया करो

सुर्खी से लाल हौंठ  
ओर अंगारे न किया करो

मर जायेगा ' मिलाप '
कभी दिल पे हाथ रख के

तुम आँखों से बार- बार 
इशारे न किया करो


.........मिलाप सिंह भरमौरी 

Wednesday, 18 September 2013

बू -आती है इमान सड़ने की

बाहर  बातें करते है 
व्यवस्था को ठीक करने की
अंदर मिलकर  तकरीबें  सोचते है 
झौली  भरने की
कितना ढक  कर  रखें ' मिलाप '
नाक  अपना  हम 
यहाँ तो जगह -जगह पर
बू -आती  है इमान  सड़ने की


एक शेर और पेश कर  रहा हूँ ….


जो खुद करते है दगा रोज अपने रिचक  से
वो कहते है कि   इन्कलाब लाएँगे  ज़माने में

रिच्क का अर्थ ....... रोजी -रोटी का साधन 


एक और शेर प्लीज........


उसने अहद कऱ  लिया है 
इमां पर चलने का
क्या वो भी ' मिलाप '
हादसे में मारा  जायेगा


......मिलाप सिंह भरमौरी