इक दूजे से फर्क बनाकर ।
रख दी स्वर्ग सी दुनियां अपनी
नर्क बनाकर।
बयालीस के तुम हो चुके
चालीस की वो भी हो गई होगी
न साथ हुआ तुम दोनों का न तलाक
गलतियां क्या थी अब तो
कुछ समझ आ रही होगी।
असल में गलत तुम भी नहीं थे
और गलत वो भी नहीं थी
गलत न तेरे बारे सुना न उसके बारे में
बस दोनों के बीच एक अकड़ जमी थी।
क्या ऊबते नहीं हो
अब भी इस मशीन सी जिंदगी से
रोज काम पर जाओ
और रात को अकेले आकर सो जाओ।
महीने के शुरू में गुजारा भत्ता उसे दे आओ।
कभी तो दिल करता होगा तुम दोनों का
आपस में बात करने का।
आखिर क्या वजह रही इस हालात की
कुछ समझने की।
कभी सोचा है
कौन बीच में आया तुम दोनों के
विवाद सुलझाने के लिए।
कभी सोचा है भूमिका किस किस की रही
रिश्तों में आग लगाने की।
इसलिए कहते हैं पढ़ें लिखे सब समझदार नहीं होते हैं
कुछ लोग बिना आंसुओं के भी रोते हैं।
चलो देखते हैं हम भी
कौन आता है तेरा अपना तेरे पास
जब कुछ भी तेरे पास नहीं होगा।
न पैसा न शरीर की ताकत।
कौन संभालता है तुमको
देखें जब हो जाए ईश्वर न करे
तेरी ऐसी हालत।
और देखते हैं तेरे मायके वालों को भी
जब तुम मना कर दो लेने से गुजारा भत्ता।
कुछ महीनों में भूल जायेंगे वो भी
जो तुमको पढ़ाने के लिए लगा रखा है उन्होंने रट्टा।
नजरें बदल जाएंगी और सुझाव भी।
ठंडी हो जाएगी वो आग भी।
जो लगा रखी है तुम दोनों के जीवन में।
आधी उम्र तो गई
लेकिन आधी अभी भी बाकी है
इसलिए गिर जाओ इक दूजे के पैरों में झुक कर
अगर जीवन सार्थक करना है
अकड़ कर अगर ऐसे ही खड़े रहे
तो समझ लो
कुछ नहीं तुम्हारा बनना है।
इक दूजे का सम्मान करो
और जो अलग रहने की सलाह देते हैं
उनसे बचकर रहो।
अगर फिर भी अच्छा लगता है
तो दूसरों के लिए
ऐसे ही पैसा कमाने की मशीन बने रहो।
....मिलाप सिंह भरमौरी।