milap singh

milap singh

Thursday, 21 February 2013

समाज में समानता आ गई है


समाज में समानता गई है

आज अचानक मैं
अपने नीम हकीम के पास पहुंचा
मुंह के उपले दांत का
मिजाज था मुझसे कुछ रूठा
मन मंजर को देख के
कुछ चक्कर सा खा गया
इस झोलाछाप के पास
आज कैसे मिनिस्टर गया

चेतना को परखने के लिए
खुद को हल्के से थप्पड़ भी जड़े थे
पर बाहर तो पर्ची की कतार में
कुछ और नामी लोग खड़े थे
फिर सवालों भरी नजर से
मैने मंत्री की और देखा
जबावी अंदाज में उसने भी
अपनी ऊँगली से इशरा फैंका
सोच क्या रहे हो
सुबह की अख़बार नही पढ़ी  है
अब हर जगह पर समानता गई है
सुन के बात को
दिल फुले नही समाया
दिखाकर दांत को मैने
वापिसी को कदम बढ़ाया
कुछ ही दुरी पर
इक नामी मंहगा स्कूल नजर आया
शायद किसी फ़िल्मी एक्टर को
इसने था पढ़ाया
इसके गेट पर फिर मेरे
दिमाग में चक्कर खाया
गली के इक भिखारी का
बच्चा बाहर आते नजर आया
पीठ पर उसके मंहगा- सा
स्कूल बेग नजर आया
मैने भी धीरे-धीरे
बच्चे की तरफ कदम बढ़ाया
चकित -विस्मित मन मेरा
कुछ सोच ही रहा था
बच्चे ने नन्हा -सा हाथ
ऊँगली उठाते हुए उठाया
अंकल सोच क्या रहे हो
अभी-अभी यहाँ पर मैने
एडमिशन है पाया
तुमने? एडमिशन ?यंहा ?
झट मुंह पर मेरे आया
क्यों नही ? अंकल
आपने सुबह की अख़बार नही पढ़ी है ?
आज पुरे समाज में समानता गई है
जब उसने भी अख़बार का जिक्र किया
तो मै भी बगल की पतली गली से निकल लिया
अख़बार पढ़ी थी या नही
कुछ अखर सा रहा था
सब कुछ जैसे मानो
इक स्वप्न -सा चल रहा था
मैने सम्भलकर
कोशिस भी की चेतना परखने  की
हाथ -पांव झटकने की
पर सब कुछ असली -सा लग रहा था
आगे देखा तो कुछ ओर तमाशा चल रहा था
कोई सौ मीटर की दुरी पर
दिख रहा था पंचायत घर
उसकी तरफ लगातार भीढ़ बढ़ रही थी
शायद कोई आपात बैठक चल रही थी
मेरे मन में भी कोतुहल बढ़ा
मै ओर तेज कदमों से आगे चला
ये क्या ?
पंचायत में
अपनी-अपनी संम्पत्ति को लेकर
सब प्रधान के पास जा रहे थे
कोई बैंक के अकाउंट
कोई अपनी जमीं के कागज ला रहे थे

अथाह संम्पत्ति के मालिक
अमीर लोग प्रधान को बता रहे थे
बाँट दो हमारा सारा धन बराबर -बराबर
एक के बाद एक
अपने अकांउट उसे दिखा रहे थे
यह क्या? ये भूमि के मालिक
अपनी- अपनी जमीन के नक्शे
प्रधान को थमा रहे थे
बाँट दो सबमे बराबर -बराबर भूमि
साथ में रजिस्ट्री भी दिखा रहे थे
मै धीरे से आगे बढ़ा
समीप जहाँ पे प्रधान था खड़ा
मैने उसकी तरफ देखा
बिलकुल वैसे ही जैसे पहले था देखा
प्रधान ने जैसे मेरे
मुंह से सवाल था छिना
क्या सोच रहे हो ?
सच है जो देख रहे हो
अब कोई भी जहाँ में गरीब नही है
सब के पास बराबर पैसा है
अब कोई भी नही
जहाँ में भूमिहीन
अब सबके पास बराबर भूमि है


milap singh bharmouri

ye kavita ka pehla part hai, jaldi hi dusra part bhi post karunga.

Wednesday, 20 February 2013

स्वर्गा सोगी जिंया ऐ रिश्ता जोड़े (pahari boli ki kavita)


स्वर्गा सोगी जिंया रिश्ता जोड़े
चौरासी रे ,भायली रे प्यारे फेरे
बुदला रे पानी री चमक निराली
हेरदे जैने खड़ी करी पन्सेई रे मोड़े
चोबिया रे फाटा रे कैने ही क्या
हुज्दे ने कैलासा मा धुडू-भोले
घट नई कसी तौं पालनी -पुलनी
बड़ी ही शैल हा सच फटी -ओउरे
जाजुल बड़ी हा वणी री माता
करदी हा मैहर भरदी हा झौले


Milap singh bharmouri

Sunday, 17 February 2013

sirjan dharti ( gaddi boli )


सिरजन धरती 
सिरजन नजारे 
रित, धियाड़े
ते फुल -पत्र सारे
मेरे धुडू बैठे 
धोला धारी
सिरजन अम्बर 
सिरजन तारे




सिरजन =सृजन करना ,धुडू =शिव महादेव

Friday, 15 February 2013

gaddi boli me kavita



करका तों सीनका
करका तों हिण्ड
इस समाजा मंज 
कुली री के हा जींद

जम्दे मापे दुःख म्नांदे
कुली बेचारी जो 
घटिया स्कूला मंज पढांदे

बेचारी जहने भी  घरा तों
बाहर नकेंदी 
इस समाजा रे कतुने ही
दुखड़े सेंदी

बचदी-बचांदी 
सो जे बस्सा माँ पुज्दी
तेठी भी समाजा री 
कई हरकता हुज्दी

इस समाजा मा 
कुली री के हा जींद
मापे -हौरे सबी जो चिंद

ऐ ! दोगले मनुओ 
कुदरत जो समझा 
इस समाजा मा फैली 
गंदी सोचा जो बदला

ऐ कुली भी समाजा रा 
हिस्सा ही हा
गबरू तौं बगैर कजो तुसू जो
कुस दुस्दा ही ना

असे भी सब कुस 
क्र सकदी हिन
गबरू रे बराबर पड़-लिख
सकदी हिन

तुसे निचिंदे रेहा
ना समझौता रखा
बस अपनी कुली री काबिलियता पुर
भरोसा रखा 

milap singh bharmouri

Thursday, 14 February 2013

आकाश खुला है




आकाश खुला है 
ऊडान भरो
पर इस धरती से भी 
जुड़े रहो 
क्योंकि इक दिन 
उड़ते -उड़ते थक जायंगे
ये कामयाबी के पर 
कट जायंगे 
या वक्त का धागा 
क्षीण हो जायेगा 
तब ये धरती ही काम आएगी
अपनी ममतामयी गोदी में 
हमे सुलायेगी



Milap Singh Bharmouri

Tuesday, 12 February 2013

Kiss day

कभी kiss डे
कभी rose डे
हम क्या थे
और क्या हो गए

pahadi bhajan


मेरा बेडा भी पार लगायो 
तुसी तारे ने पत्थर भी राम जी

लोक ता लांदे ने जग ते लंगर 
मुट्ठी नई नाजे दी मेरे अंदर
घर मेरे भी भोग लगायो 
तुसी तारे ने गरीब भी राम जी


मेरा बेडा भी पार लगायो 
तुसी तारे ने पत्थर भी राम जी



लोक ता जांदे ने मंदर-द्वारे 
किराया नी जेब म़ा,रूपया मेरे
कदी मुंजो भी दर्श दिखायो 
तुसी तारे ने गरीब भी राम जी


मेरा बेडा भी पार लगायो 
तुसी तारे ने पत्थर भी राम जी


लोक चढांदे ने सोना ते चांदी
मेरे ता हिरदे म़ा बस श्रधा ही आंदी
मेरी श्रधा रा मुल भी जी पायो 
तुसी तारे ने पत्थर भी राम जी


मेरा बेडा भी पार लगायो 
तुसी तारे ने पत्थर भी राम जी



मिलाप सिंह भरमौरी