खड्डा खोदो तो कुआँ बनाने के लिए।
न कि किसी को उसमें गिराने के लिए।
वरना खुद ही गिर जाओगे उसमें तुम।
और कोई नहीं आएेगा उठाने के लिए।
........ मिलाप सिंह भरमौरी
( दीपावली के त्योहार की सभी दोस्तों को हार्दिक शुभकामनाएं। )
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खड्डा खोदो तो कुआँ बनाने के लिए।
न कि किसी को उसमें गिराने के लिए।
वरना खुद ही गिर जाओगे उसमें तुम।
और कोई नहीं आएेगा उठाने के लिए।
........ मिलाप सिंह भरमौरी
( दीपावली के त्योहार की सभी दोस्तों को हार्दिक शुभकामनाएं। )
हम कितने खुदगर्ज होते जा रहे हैं।
अपने सिबाय सब झूठे नजर आ रहे हैं।
निरंतर गिरता जा रहा है जिसमें चरित्र।
यह कैसी रेतीली सी दुनिया बना रहे हैं।
.... मिलाप सिंह भरमौरी
घायल पडा है मन उलझनों की सेज पर।
आती है हँसी बहुत तमाशा जग का देखकर।
यह मिटती क्यों नहीं, यह आखिर कैसी भूख है।
टुकडे हराम के ढूंड रहा इज्जत की रोटी फेंक कर।
......... मिलाप सिंह भरमौरी
बादल हट गए हैं सब
मौसम साफ लगता है।
जमीं पर गिरा पानी
फिर भी खिलाफ लगता है।
फिर उडेगा हवा में
जुडेगा मिलेगा कणों से।
अभी ग्रहन कर रहा है
सूरज से यह ताप लगता है।
........ मिलाप सिंह भरमौरी