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हम कितने खुदगर्ज होते जा रहे हैं। अपने सिबाय सब झूठे नजर आ रहे हैं। निरंतर गिरता जा रहा है जिसमें चरित्र। यह कैसी रेतीली सी दुनिया बना रहे हैं।
.... मिलाप सिंह भरमौरी
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