milap singh

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Sunday, 15 October 2017

भूख

घायल पडा है मन उलझनों की सेज पर।
आती है हँसी बहुत तमाशा जग का देखकर।
यह मिटती क्यों नहीं, यह आखिर कैसी भूख है।
टुकडे हराम के ढूंड रहा इज्जत की रोटी फेंक कर।

                ......... मिलाप सिंह भरमौरी

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