तलाश जारी है मगर गुम क्या है।
कुछ खोया है हरपल भ्रम - सा है।
अधूरा ही रह गया लफ्ज़ ज्यादा यहां
हर कोई कहता अभी कम - सा है।
यह भीड़ इतनी क्यों लगती है अजनबी
जब पता है हर ज़र्रा तुम - सा है।
बदल जाता है कब यह पता नहीं चलता
खाव कितना जहां में नरम - सा है।
~मिलाप सिंह भरमौरी~
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