milap singh

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Wednesday, 9 June 2021

बायोमेट्रिक अटेंडेंस मशीन

थोड़ी नहीं बहुत गमगीन हूं।
मैं सरकारी दफ्तर में लगी
बायोमेट्रिक अटेंडेस मशीन हूं।

करोड़ों खर्च करके मुझे लगवाया जाता है
लेकिन फिर कुछ महीनों बाद 
मुझे कबाड़ बनाया जाता है।

थोड़ी नहीं बहुत गमगीन हूं।
हां मैं बायोमेट्रिक अटेंडेस मशीन हूं।

प्राइवेट दफ्तरों में
अनपढ़ लोग भी मुझे आराम से चलाते हैं
पर सरकारी लोग पता नहीं क्यों
बहाने बनाते हैं।

पता नहीं मुझमें कमी है
या यह सारा सिस्टम ही ठग है
या फिर इन सरकारी बाबुओं की 
चमड़ी का पैटर्न ही अलग है।

यूं तो हर पल हर कोई 
मुझे टच करने से डरता है।
पर क्या यह सच बात है कि
मुझे दूर से देखने से भी कोरोना हो सकता है।

मैं कारगर मशीन हूं और
एकमात्र विकल्प हूं भविष्य का भारी
बस अब तय आपको करना है
मुझे प्रयोग आप करेंगे या प्राइवेट कर्मचारी।

    ..... मिलाप सिंह भरमौरी

Tuesday, 23 March 2021

मौन

जीवन का पथ
सरल बहुत है
यह बिन घोड़ों से
चलता रथ है
फिर इसे जटिल बना देता है कौन?

धरती पर उपजे
जी लेते हैं सब
प्यासे पानी पी लेते हैं सब
सांस लेना भला कौन सिखाता
चलने के लिए बच्चा
खुद पैर उठता
फिर पथ को जटिल बना देता है कौन?

सुख दुख क्या है
सिर्फ मन की अवस्था
हर कोई उसे भीतर रखता
सोचने के बस कोण अलग हैं
समस्याओं से लडने के अपने ढंग हैं
स्थिति सबकी इक जैसी है
बस कोई बकता है कोई रहता मौन।

......मिलाप सिंह भरमौरी।


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Monday, 22 March 2021

प्रयास

स्वाद खाने में नहीं
भूख में होता है
वरना सब होने के बाद भी
कोई क्यों रोता है।

वो नींद नींद नहीं होती
जिसके लिए लेनी पड़े गोली
सकून मेहनत से मिलता है
जब बीज बोया हुआ
फूल बन खिलता है।

सहज मिला कुछ भी
कदर खो देता है
प्रयास से पाया
तुच्छ भी सोना होता है।

....मिलाप सिंह भरमौरी।


Thursday, 18 February 2021

हाथ धोने के लिए

पतली ही रख तबीयत कि खुदा
मशक्त न करनी पड़े वेट खोने के लिए।
उस अमीरी का भी क्या फायदा
जब खुद का हाथ ही न पहुंचे धोने के लिए।

.....मिलाप सिंह भरमौरी।

दीवारों के कान

कुछ पल के बाद
सब कुर्सियों पर सो जाते हैं।
अब मेरे शेर लोगों को नहीं भाते हैं।
पर इत्मीनान है इस बात का
के दीवारों के भी कान होते हैं
इसलिए चलो दीवारों को ही शेर सुनाते हैं।


..... मिलाप सिंह भरमौरी

Saturday, 13 February 2021

सड़क पर सौहार्द

सड़क पर सौहार्द

राकेश एक प्राइवेट कम्पनी में काम करता है और हर साप्ताहिक अवकाश पर अपने गांव को जाता है। नौकरी करने के स्थान और उसके गांव के बीच यातायात की अच्छी सुविधा है । गांव से लेकर रेलवे स्टेशन तक उसे समय समय पर बस मिल जाती हैं। रेलवे स्टेशन के अंतिम प्लेटफार्म और हाईवे के बीच लगभग डेढ़ सौ मीटर की दूरी है। यह हाईवे राष्ट्रीय राजार्ग 44 का हिस्सा है जो कि व्यावसायिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि अभी पिछले साल ही इस राजमार्ग को फोरलेन में बदला गया है इसलिए इसके किनारे की जमीन रेलवे स्टेशन के पास खाली पड़ी है, जिस पर कई भूमाफियाओं की नजर है।एक दो साल तो माहौल बिल्कुल सामान्य रहा। लेकिन एक दिन राकेश ने रेलवे स्टेशन से हाईवे की ओर निकलने वाली पगडंडी के बगल में एक काले तिरपाल की झोंपड़ी देखी जो किसी ने रात के अंधेरे में बना दी थी। राकेश ने चलते चलते झोंपड़ी के अंदर झांकने की कोशिश की लेकिन झोंपड़ी चारों ओर से बन्द थी शायद उसके अंदर कोई था भी नहीं।
ऐसे ही कई सप्ताह गुजर गए एक दिन रकेश ने देखा कि उस झोंपड़ी के बाहर लकड़ी की चारपाई पर एक नवनिर्मित बाबा बैठा था।जो बाबा कम पहलवान ज्यादा लग था। या यूं कह सकते हैं कि नया नया रूप धारण किया था अभी भाव आने बाकि थे। कुछ सप्ताह बाद उस झोंपड़ी की सारी तिरपाल हटा दी गई और झोंपड़ी के बीच एक नवनिर्मित मजार आम लोगों की नजरों के लिए तैयार थी। किस्सा मजार तक ही नहीं रुका मजार के बिल्कुल बगल में पता नहीं कब एक मन्दिर भी बनकर तैयार हो गया।इतना सांप्रदायिक सौहार्द कि देखने वाला भी हैरान रह जाए। लेकिन बात धर्म की नहीं थी जो दिखाया जा रहा था। अब वहां से बाबा गायब हो चुका था शायद उसका काम इतना ही था।
कुछ ही दिनों बाद मन्दिर के बगल में एक ट्रैवल एजेंसी नजर आने लगी।उसके बगल में ढाबा बनकर तैयार हो गया ओर कितनी ही छोटी छोटी बीड़ी सिगरेट की दुकानें यह क्रम तब तक चलता रहा जब तक आगे हाईवे पर बना रेन शेल्टर नहीं आ गया। राकेश जब भी उस रास्ते से गुजरता है तो उस मजार को देखना कभी नहीं भूलता।

......मिलाप सिंह भरमौरी