सोचते-सोचते उहीं दिन गुजर जायेगा
दिन गुजर गया तो नही फिर आयगा
सम्भाल के रखो इस वक्त के आईने को
कुछ न हाथ आएगा गर बिखर जायेगा
हश्र क्या हो नराजगी से पता नही पर
रहम से उसके हाँ जीवन संबर जायेगा
एहतियात में बुराई क्या 'अक्स' अगर
जरा- सी गौर से कुछ निखर जायेगा
मिलाप सिंह