हसरतें मर गई जिन्दगी रह गई
मन्दिरों में भटकती वन्दगी रह गई
हुस्न की जमाने में कद्र न हुई
फैशनपरस्ती में दवी सादगी रह गई
किस तरह हुआ गजल से प्यार
बात दिल में 'मिलाप' राज की रह गई
गोशे -गोशे से जमाने ने लुटा मुझे
नतीजा हिस्से में मेरे शायरी रह गई
........मिलाप सिंह भरमौरी
मन्दिरों में भटकती वन्दगी रह गई
हुस्न की जमाने में कद्र न हुई
फैशनपरस्ती में दवी सादगी रह गई
किस तरह हुआ गजल से प्यार
बात दिल में 'मिलाप' राज की रह गई
गोशे -गोशे से जमाने ने लुटा मुझे
नतीजा हिस्से में मेरे शायरी रह गई
........मिलाप सिंह भरमौरी