milap singh

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Monday, 15 July 2013

ये तेरी नजर भी

ये तेरी नजर भी कमाल करती है
मेरी रुकी सांसों में जान भरती है

कोई तलवार है न कोई खंजर
फिर भी ये काम तमाम करती है

देखने वाला लड़खड़ाए शराबी जैसा
न जाने कैसी ये चाल चलती है

अब जरूरत नही मैखाने जाने की
तेरी नजरों से मेरी जाम भरती है

जो ये  उठती है इतनी हमदर्दी से
शायद मोहावत का पयाम करती है

इसको समझने की कोशिस कर तू
ये कुछ न कुछ तो व्यान करती है



.....मिलाप सिंह भरमौरी

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