ये तेरी नजर भी कमाल
करती है
मेरी रुकी सांसों
में जान भरती है
कोई तलवार है न कोई
खंजर
फिर भी ये काम तमाम
करती है
देखने वाला लड़खड़ाए
शराबी जैसा
न जाने कैसी ये चाल
चलती है
अब जरूरत नही मैखाने
जाने की
तेरी नजरों से मेरी
जाम भरती है
जो ये उठती है इतनी हमदर्दी से
शायद मोहावत का पयाम
करती है
इसको समझने की कोशिस
कर तू
ये कुछ न कुछ तो
व्यान करती है
.....मिलाप सिंह
भरमौरी
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