क्यों बहशी बन रहा हदें शराफतों की लांघ कर।
अँधेरे में खो गया है तू खुद में कुछ सुधार कर ।
झूठी तमाम बातें हैं जो चौराहे पे लोग करते हैं
जन्नत नहीं मिलती कभी कोख में बेटियां मारकर ।
ये लालच से भरे हैं , कातिल खुद की सोचते हैं
पुण्य नहीं मिलता कभी खून की नदियां लांघकर।
यह कर्म धर्म की बातें कभी हिंसा नहीं सिखाती
अगर ऐसा कुछ कहा है तो इसमें कुछ सुधार कर।
~ मिलाप सिंह भरमौरी~
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