लम्हा लम्हा है मुश्किल
किस किस से लड़ता है ये दिल
इक ओर मोहब्बत के धोखे
इक ओर अधर में मुस्तकबिल ।
कभी तेरे संग के ख्बाब सजाऊँ
हवा में सुंदर महल बनाऊँ
बन्द आंखों से दुनिया अच्छी लगती
तकदीर भी मनचाही लगती
पर आंखे खुलते ही रोता है दिल।
यह प्यार मोहब्बत की बातें
अब हृदय पे करती हैं घातें
चेहरे बदलते देखे हैं कितने ही
कितनी ही स्मृति में छाई हैं यादें
सोच रहा हूँ तन्हा बैठे
आखिर ऐसा क्या किया उसने हासिल।
...... मिलाप सिंह भरमौरी
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