बच के निकलता हूँ
तेरी गली से
कि फिर तुमसे
सामना न हो जाए।
बड़ी मुश्किल से
समेटे हैं दिल के टुकड़े
कि फिर वही
मामला न हो जाए।
बहुत डरता हूँ तेरी
झुकी सी पलकों से
असर बहुत है
तेरी शोख़ नजरों में।
जानलेवा है बहुत
यह बेरुखी तेरी
दर्द सीने में वो फिर
वेवजह न हो जाए।
....... मिलाप सिंह भरमौरी
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