milap singh

milap singh

Wednesday, 10 April 2013

दहर-ए-शरीकी

उजाले की दोस्ती है
अनजान है तारीकी में
यहाँ तक ही पहूंच पाया
सोचा जब भी बारीकी में
इक तू ही साथ है बस
मूझे तेरी ही आस  है
यूं तो िकतने ही लोग है
इस दहर-ए-शऱीकी में

.....milap singh bharmouri

1 comment:

  1. भावात्मक अभिव्यक्ति नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें नरेन्द्र से नारीन्द्र तक .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1

    ReplyDelete