अगर नामुमकिन नही है कुछ भी
इस जहान में
तो मिटती क्यों नही गरीबी मेरे
हिंदुस्तान से
इन झुगियों से जैसे कोई वास्ता नही है
इस चश्मे - पुरआव की कोई दास्ताँ नही है
बस निकल लेते है काफिले इधर से
अनजान से
नेमते -खुल्द -में वो जिए जा रहे है
सियासतों पे सियासत किए जा रहे है
देखें तो इक झलक इधर भी वो
सब्र -ओ -ताव से
....milap singh bharmouri
चश्मे – पुरआव -- आंसुओं से भरी
आँख , नेमते –खुल्द -- स्वर्ग जैसा सुख , सब्र -ओ –ताव -- सहास से
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