हर पल तुझे सोचता रहता हूँ
मेरी धडकनो में समा गई है तू
हर कहीं तुझको ही देखता हूँ
मेरे जिस्मो जां में छा गई है तू
अब तुम्हें पा लूं या नहीं पा लूं
कुछ फर्क नहीं पडता है मुझे
तन को छू कर मन से मेरे अब
जर्रे जर्रे रुह तक आ गई है तू
------- मिलाप सिंह भरमौरी
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