milap singh

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Friday, 6 February 2015

रूठ जाती है

जब वो रूठ जाती है
जैसे किस्मत लूट जाती है

लहलहाते हुए शजर से
जैसे टहनी टूट जाती है

जब कम करके वो शिकन को
हिलाती है कमान पलकों की

फिर मिलती है जन्नत राहत की
फिर बचती है जान सांसो की

----- मिलाप सिंह भरमौरी

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