milap singh

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Wednesday, 27 December 2017

किनारे भी बन जाते है

दरिया जब बनता है किनारे भी बन जाते हैं।

दुखों  के आने  पर सहारे भी  मिल जाते हैं।

परिवर्तन तो तय है हर पल निरंतर चलता रहता

फूल पुराने मुरझाने पर पुष्प नए खिल जाते हैं।

नया नया वाकिफ है गम से आँसू तो निकलेगें 

धीरे धीरे सब दुनिया के सांचे में ढल जाते हैं।

सुप्त पडा है जल तो क्या खामोशी भी तोडेगा 

बहते हवा के  झौंके से धारे  भी बन जाते हैं।

                ............. मिलाप सिंह भरमौरी

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