milap singh

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Friday, 12 December 2014

Shahar ki trha


    क्या शहर की तरह
हो जाएगें गांव भी

     रूखे रूखे से दिखेंगे
यहां भी सब आदमी

    मृगतृष्णा में फंस जाऐंगे
सब दौलत के लिए

    क्या उनको भी नहीं रहेगी
फुर्सत दो सांस की

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