सर्दी के दिन है सर्दी की रातें
हो रही हैं कोहरीली बरसातें
जम चुकी है स्याही कलम की
लिखें कैसे अब दिल की बातें
बेघर फुटपाथ पे ठिठुर रहे हैं
खो रहे हैं वो अब अपनी जानें
पूंजीपति को फर्क क्या इससे
हो रही उसकी रंगीन नित रातें
सबके पास हो बुनियादी चीजें
कोई समाज में समानता ला दे
----- मिलाप सिंह भरमौरी
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