जब दौलत का नशा सिर चढ जाता है
फिर भाई का दुश्मन भाई बन जाता है
रोज होती है कोर्ट -कचहरी की बातें
रोज किस्सा दो गज का बन जाता है
फिर भूल जाते हैं सब आगे पीछे का
बस बदले के लिए मन ठन जाता है
क्यों भूल जाते हैं इंसानियत को इंसान
ये दौलत का खजाना कब संग जाता है
---------- मिलाप सिंह भरमौरी
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