milap singh

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Monday, 24 December 2012

बरहम से खाव मेरे



बरहम से खाव मेरे


बरहम से खाव मेरे फिर से जुड़ने लगे
आकर के गम के झौंके वापिस मुड़ने लगे

पहाड़ों की हसीन बारिश रिमझिम फुहार -सी
शवनम के जैसे कतरे दिल पे गिरने लगे

गम का जिक्र करते पहुंचा मै कहाँ पे
बादल मस्त फलक से जमीन पर उतरने लगे

भंवरों को देख के कलियाँ निखार पाए
इस मस्त मौसम में फूल दिल में खिलने लगे

पहाड़ों की कोई रानी बर्क -सा लिए तव्सुम
ऐसा लगे जैसे 'अक्स' पे हंसने लगे


मिलाप सिंह

2 comments:

  1. भवरों को देख के कलियाँ निखार पाए
    इसे मस्त मौसम में फूल दिल में खिलने लगे
    बहुत खुबसूरत ग़ज़ल दाद तो कुबूल करनी ही होगी

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  2. sunil kumar ji sppeling me mistake ke liye mafi....

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