ऐ ! जिन्दगी मेरे खाब तू यूँ फना न कर
बेवक्त दगा न दे मुझे तू गुनाह न कर
हर शय़ से आजतक मैने की है ईमानदारी
मै भी करूंगा बेबफाई तू गुमान न कर
लुत्फ़ उठाने दे जरा दुनिया की रंगीनियों का
कर न तकरार मुझसे खराब समां न कर
किससे की है तूने आजतक बफा बता
जज्बात दिल के मेरे फिर से जबां न कर
जरुर मिलेगी मंजिल 'अक्स ' जहाँ में कभी
उम्मीद बेशक धुंदली ही पर धुआं न कर
मिलाप सिंह
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