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कब तलक आखिर यूंही लडखडाया जाए
क्यों न इक कदम तेरी ओर बढाया जाए
बहुत सुनते आए हैं इक नाम मुकद्दर का
क्यों न आज इसे भी आजमाया जाए
-- मिलाप सिंह भरमौरी
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