milap singh

milap singh

Friday 9 August 2019

कश्मीरी पंडित

कश्मीरी पंडित
*************

गाड़ी की खिड़की से बाहर चमन बड़ी देर से एकटक होकर देखे जा रहा था मानो जैसे वह प्राकृतिक दृश्यों में खो गया हो। जागीर सिंह ने चमन से कुछ पूछा लेकिन उसे उसकी आवाज सुनाई नहीं दी।फिर जागीर सिंह ने उसे थोड़ा सा हिलाया और कहा-
कित्थे खो गया चमने?
तेनू आवाज नई सुनाई दित्ती।
की गल्ल है?
चमन ने झुंझला कर सिर हिलाया - नहीं कोई बात नहीं है। बस ऐसे ही।
चमन की आँखों में आँसू छलक आये थे।
वे सारे दोस्त बाबा अमरनाथ के दर्शन कर के वापिस पंजाब को लौट रहे थे।
जागीर सिंह ने आत्मीयता जताते हुए फिर पूछा- नहीं नहीं यार तू गल्ल ता दस्स, होय की ए तेनू?
चमन ने कहा इस हाइवे से आठ किलोमीटर दूर मेरा गांव है। त्राल में पड़ता है। लेकिन अब मेरा कहां सब उजड़ गया है। यह कह कर छलके हुये आँसू अब आंखों से बाहर आ गए थे।
कई साल हो गए हैं अपने घर को देखे हुए, पता नहीं अब है भी के नहीं?
हालात ऐसे हैं कि वहाँ जा भी नहीं सकते।
हालात नू मारो गोली तू बस ऐ दस्स तेरा दिल करदा अपना पिंड वेखन नू?
नहीं नहीं यार क्या बात कर रहे हो
वहाँ जाना खतरे से खाली नहीं है सारे मुसीबत में पड़ जायेंगे।

चमने बस ऐ दस्स तेरा दिल करदा जाने नू हाँ या ना बस।
दिल तो करता है पर---
दिल करदा है ता - ओ भाई कर्मचन्द मोड़ ले गड़ी नू त्राल दी साईड अप्पा भी दिख के आइये चमने दे पिंड नू।
पर कर्मचन्द तेनू ता कोई एतराज नई ऐ।
गड्डी दा मालिक ता तू है।

नहीं नहीं भाई मुझे क्यों एतराज होगा।
यह कहकर कर्मचन्द ने गाड़ी हाइवे से गांव की ओर मोड़ ली। बस दस पन्द्रह मिंट में वे गांव में पहुंच गए।
जैसे ही वे गाड़ी से नीचे उतरे तो एक मुसलमान आदमी ने जो चमन की उम्र का ही लगता था उसे पहचान गया। वह बड़े प्यार से उससे मिला और हमें चमन के घर की ओर ले गया।
लेकिन कुछ ही मिनटों में वहां लोगों का हुजूम इकट्ठा होना शुरू हो गया।
चमन ने पन्द्रह बीस जले हुए घरों की तरफ ईशारा करते हुऐ कहा - यह सब कश्मीरी पंडितों के घर हैं कभी यहाँ पर लोग बसते थे। लोग कहाँ सब मेरे भाई बहन ही तो थे,रिश्तेदार - अधूरे से शब्द ही उनके मुहं से निकल पा रहे थे।
कुछ घर पूरी तरह से मलवे के ढेर में बदल चुके थे तो कुछ की आधी अधूरी दीवारे जिन पर जली हुई लकड़ी की बल्लिया उल्टी पड़ी थी। यह दीवारे इस आस में खड़ी थी कि शायद मेरे लोग फिर वापिस लौटकर आएं यहाँ रहने के लिए।
चमन की नजर अपने घर पर पड़ी जो अभी सही सलामत था सारे दोस्त वहां गए तो पता चला कि उस घर पर किसी मुसलमान परिवार ने कब्जा कर रखा है और वह अपने परिवार के साथ उस घर में रह रहा है।
चमन के दोस्तों को बताया गया कि उसका दादा एक नेकदिल इंसान था इसलिए उसके घर को नहीं जलाया था। लेकिन ऐसा मुमकिन लगता नहीं था शायद घर को देखकर दंगाइयों की नीयत बदल गई हो उस पर कब्जा करने के लिए या यह भी संभव था कि आग वहां पहुंचते पहुंचते खुद ही बुझ गई हो। और घर को खाली देख उस पर कब्जा कर लिया हो।
जहां हमारी गाड़ी खड़ी थी उस तरफ एक आवाज आई। हम उस ओर गए तो देखा भीड़ में से किसी ने हमारी गाड़ी पर पत्थर मारा था जिससे गाड़ी के आगे वाले कांच में दरारें आ गई थीं। भीड़ को देखकर अब डर भी लगने लगा था। जागीर सिंह सिख था और उसने सरदारों वाला पहनावा पहन रखा था। उसे देखकर दो तीन ओर सरदार वहां आ गए जो त्राल के स्थानीय बाशिंदे थे। वे जागीर सिंह के पास आए और पूछा - तुम यहाँ क्या कर रहे हो?
जागीर सिंह ने उन्हें सारी बात समझाई की वह अपने पण्डित दोस्त के साथ उसका घर देखने आए थे।
अब वे सभी भीड़ के तेवर पहचान गए थे।
उन सरदारों ने जागीर सिंह को भरोसा दिलाया कि वह डरे नहीं हम सब सम्भाल लेंगे ।उन्होंने बताया कि पास के ही तीन चार गांवों में सिख रहते हैं। उन्होंने हमें गाड़ी में बैठाया और तब तक वहां खड़े रहे जब तक हमारी गाड़ी वहां से सुरक्षित नहीं निकल गई।

....... मिलाप सिंह भरमौरी

No comments:

Post a Comment