milap singh

milap singh

Sunday 28 May 2023

सरकारी भूमि हूं

नजर गड़ाए फिरते हैं
ललचाए ललचाए फिरते हैं 
दिन रात षड्यंत्र रचाते हैं
मैं कैसे अपना अस्तित्व बचाऊं
अपनो का प्यार भूली हूं।
मैं सरकारी भूमि हूं।

चरागाह पर हो गए कब्जे
जंगल को तो सूखे निगले।
आंगन अपना कर लिया चौड़ा
शमशान घाट को भी न छोड़ा।
मैं वोट की खातिर सूनी हूं
मैं सरकारी भूमि हूं।

सरकारी रास्ते के खो गए पत्थर
बचपन में हम चलते थे जिन पर
कुएं पुराने भी नजरों में है
सड़क के आधे से कम हो गए मीटर
मैं रख रखाब से छूटी हूं
मैं सरकारी भूमि हूं।

........मिलाप सिंह भरमौरी।




पल पल

पल- पल  में    जो  डंसता  है।
वो  मन की  एक  अवस्था है।

जो समझ गया इस नुक्ते को
वह  सदा  खुशी  में रहता है।

अनजानेपन का लिहाफ उतारो
समझ  में  संयम  रहता  है।

सीखना है तो ईलम को सीखो 
सिर्फ ईर्षा से क्या बनता है ।

दौलत शोहरत क्या कर लेगी
जब भीतर आग सा जलता है।

   ....... मिलाप सिंह भरमौरी 




Sunday 7 May 2023

शब्द


शब्द

शब्दों से  प्यार  करो।
शब्दों का सत्कार करो।

शब्द बनाए बिगड़े काम
शब्द बिगाड़े बनते काम
शब्दों की पहचान करो।

शब्द  दिलाते  मीठी  याद
शब्द  दिलाते  तीखी याद
शब्दों की न तीखी धार करो।

शब्द दिलाए तख्तोताज
शब्द छुड़ाए चलता राज
शब्दों से न बैर करो।

.......मिलाप सिंह भरमौरी।