A place for original Hindi shayari sad shayari romantic shayari hindi kavita and pahari kavita of milap singh
milap singh
Monday 31 December 2012
Thursday 27 December 2012
उफनते गम के सुमुंदर में
Tuesday 25 December 2012
खुद की बेबफाई
अजीब जिन्दगी है मेरी मुझसे क्या चाहती है
खुद की बेबफाई और मुझसे बफा चाहती है
लेती नही मशिवरा मेरा 'मिलाप' कभी भी
हर वक्त हर जगह खुद का कहा चाहती है
कभी दुःख के साथ में कभी सुख की आस में
ले जाती है कहीं भी मुझे ये जहाँ चाहती है
भर गये है जख्म मेरे शायद दिल के 'अक्स'
अब देना जख्म कोई ये मुझे नया चाहती है
मिलाप सिंह
Monday 24 December 2012
बरहम से खाव मेरे
Friday 21 December 2012
Wednesday 19 December 2012
ye ! jindgi mere khav
ऐ ! जिन्दगी मेरे खाब तू यूँ फना न कर
बेवक्त दगा न दे मुझे तू गुनाह न कर
हर शय़ से आजतक मैने की है ईमानदारी
मै भी करूंगा बेबफाई तू गुमान न कर
लुत्फ़ उठाने दे जरा दुनिया की रंगीनियों का
कर न तकरार मुझसे खराब समां न कर
किससे की है तूने आजतक बफा बता
जज्बात दिल के मेरे फिर से जबां न कर
जरुर मिलेगी मंजिल 'अक्स ' जहाँ में कभी
उम्मीद बेशक धुंदली ही पर धुआं न कर
मिलाप सिंह
Monday 17 December 2012
फिर भी तुमसे मोहबत है
फिर भी तुमसे मोहबत है
तोड़ दे दिल मेरा इजाजत है
तुज्को मैने दिल से चाहा है
बस यही मेरी हकीकत है
बेबफा हो तुम तो भी क्या
मुझको को तो बफा की आदत है
महंगा पड़ जायेगा नजर मिलाना भी
कहने को तो फक्त शरार्त है
काम आएगा अब मयखाना ही
जहाँ रोज 'मिलाप' कयामत है
संभल के चल इश्क की राह पे
इसमें सपनों सी नजाकत है
मिलाप सिंह
Friday 14 December 2012
jajbat rokte - rikte
Thursday 13 December 2012
आप आएँ तो
घटा बरसती है धरती पे महर होती है
कितनी मौजों को मेरे संग कर देते है
फीकी तस्वीर में प्य्रारे रंग भर देते है
आपके बिन तो जिन्दगी अधूरी लगती है
दुनिया में बस अँधेरा ही अँधेरा है
दिखता तो कुछ नही कहने को सबेरा है
आप आए तो मेरी भी सहर होती है
फूल- पत्ते ,कलियाँ सब खिल जाती है
खोई हुई खुशिया सब मिल जाती है
देखने वाली 'अक्स' ये सहर होती है
मिलाप सिंह
Tuesday 11 December 2012
मुझसे खफा तू जनाब रहती है
Monday 10 December 2012
कितने खुदगर्ज ये
Friday 7 December 2012
dard dil ke mere
दर्द दिल के मेरे
दर्द दिल के मेरे जब से कम हो गये
दुनिया की भीड़ में फिर से गुम हो गये
पहले खुद को जर्रा समझता था मै
दिन क्या बदले फिर से हम हो गये
फिर से हुस्न पर निखार आने लगा
शबनमी होंठ फिर से नम हो गये
फिर से जिन्दगी की तरफ देखने लगे
मर मिटने के खाब बरहम हो गये
फिर से खोने लगा दिल रंगीनियों में
हर हसीन चेहरे अपने सनम हो गये
मिलाप सिंह
Thursday 6 December 2012
ham se na dhoka kro
हमसे न धोका करो
यूँ हमसे न धोका करो
तुम इतना न सोचा करो
कदम तो बढते है मेरी तरफ
तुम जबरन न रोका करो
समा भी तो है मेरी जानिब
तुम बेकार न मौका करो
जुबान को कहने दो दिल की 'अक्स'
तुम इसको न रोका करो
milap singh
Wednesday 5 December 2012
abhi abhi pi hai
Tuesday 4 December 2012
aansuon ko rok kar
आंसुओं को रोक कर
Sunday 2 December 2012
tanhaion ke pal
Friday 30 November 2012
tere honton pe
Thursday 29 November 2012
shrab ki botal
Tuesday 27 November 2012
jab mere pehlu se
Monday 26 November 2012
APNI MANJIL KI TARAF
pahli pahli bar jab sharab pi mene
Sunday 25 November 2012
Kus pal ke liye
रास्ता -
िबलकुल सूना था
चंद मुसािफर आए
कुछ पल के िलए
चंचलता की लहरे दौड पडी
िदलकशी छा गई
मुसािफर चले गए
रास्ता-
िफर सूना रह गया
रात-
िबलकुल सूनी थी
अँधेरी थी
भोर हुई सूरज िनकला
कुछ पल के िलए
हरसूँ रौशनी छा गई
चंचलता छा गई
सूरज चला गया
रात-
िफर सूनी रह गई
िजंदगी-
िबलकुल सूनी थी
कुछ मेहमान आए
स्वप्न बन कर
कुछ पल के िलए
ऐसा लगा, िजंदगी सँवर गई
स्वप्न टूटा
िजंदगी-
िफर सूनी रह गई
Friday 23 November 2012
Tuesday 20 November 2012
संयुक्त िवशाल भारत Sanyukt Vishal Bharat
कैसा वो दौर था
कैसी थी हवाएँ
जब अपने प्यारे भारत को
लग रहीं थी बद्दुआएँ
जब घ्रीणा की दुर्गंध
हर ओर से थी आती
जब बन गया था वैरी
अपना धर्म- समप्रदाय और जाित
न जाने कैसी वो शतरंज थी
और कैसा था वो पासा
िजसने हर िकसी के मन में
भर दी थी िनराशा
कैसा वो दौर था
कैसी थी बहारें
जब दाडी-मूछ के भेद पर
बरस रही थी तलवारें
काश! के कोई न करता
उन सरहदों से शरार्त
काश! के अब भी होता
वो अपना संयुक्त िवशाल भारत
Monday 19 November 2012
Sunday 18 November 2012
Khas Lamha खास लम्हा
दर्द इक एहसास ही तो है
राहत की आस ही तो है
हम नहीं इससे मुतािसर
हमको यह रास ही तो है
िजगर में होती है हलचल
यह इक प्यास ही तो है
ये है गर्मी का इक सबब
ये भी इक सांस ही तो है
याद आता है खूदा सबको
लम्हा यह खास ही तो है
Tumhare kabil तुम्हारे कािबल
मत कूदो उस समुंदर में
िजसका कोई सािहल न हो
आज हम तुम्हारे कािबल नहीं
शायद कल तुम हमारे कािबल न हो
िमलाप िसंह ''अक्स''
MAT KUDO US SUMUNDER ME
JISKA KOI SAHIL NA HO
AAJ HAM TUMHARE KABIL NHI
SHAYAD KAL TUM HAMARE KABIL NA HO
milap singh
Friday 16 November 2012
Tere nam ki तेरे नाम की
तेरे नाम की हर शय से
मैंने िरश्ता तोड िलया
याद न आए तू मुझको
तेरे शहर को छोड िदया
संग के िदल में जब जरा भी
उल्लफत न जागी
पत्थर के पहाडो से टकरा के
हवा ने रुख मोड िलया
यह न सोचो ' िमलाप ' तुम्हारी
शामोसहर कहाँ गुजरेगी
शहर के इक सज्जन ने
मयखाना नया खोल िलया
िजंदगी की राह पे चलते
तूने नहीं कोई लापरवाही की
गम ओर इश्क भला िकसने
इस दुिनया में मोल िलया