milap singh

milap singh

Monday 10 December 2012

कितने खुदगर्ज ये



कितने खुदगर्ज ये


कितने खुदगर्ज ये दुनिया वाले है
फरेब का अक्स ये दुनिया वाले है

जगह मुक्कदस और जहन फरेबी
मतलबी प्यार ये दुनिया वाले है

किसी को तडफता देख हंसते है
कितने संगदिल ये दुनिया वाले है

मेरा मेरी और ये धन -दौलत बस
भ्रम में भटकते ये दुनिया वाले है

अपना रुतवा ,रोटी ,और जगह के लिए
खून के प्यासे ये दुनिया वाले है

सर झुका 'अक्स' खुदा के दर पे ही
खुद भिखारी ये दुनिया वाले है


milap singh

No comments:

Post a Comment