milap singh

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Wednesday 20 November 2019

खाव

तलाश जारी है मगर गुम क्या है।

कुछ खोया है हरपल भ्रम - सा है।

अधूरा ही रह गया लफ्ज़ ज्यादा यहां


हर कोई कहता अभी कम - सा है।

यह भीड़ इतनी क्यों लगती है अजनबी


जब पता है हर ज़र्रा तुम - सा है।

बदल जाता है कब यह पता नहीं चलता


खाव कितना जहां में नरम - सा है।

      ~मिलाप सिंह भरमौरी~


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