milap singh

milap singh

Tuesday, 4 November 2025

देर है अंधेर नहीं

देर है अंधेर नहीं
यह केबल एक वाक्य नहीं
यह तजरुबा है पीढ़ियों से 
विश्वास है अनंत से।
मद में चूर बलशाली 
बन जाता है अभिमानी
सब होता जब पास
हो जाता है अज्ञानी ।

कुछ समय के लिए 
सब लगते हैं अपने
गलत सही में साथ देने वाले 
समय भी लगता है अपना
तुच्छ लगते हैं 
पांव में छाले वाले।

पर समय तो समय है 
क्या समय किसी का हुआ है 
समय तो चलता है 
निष्कपट भाव से 
अपनी ही चाल से ।
समय नहीं बदलता
बस मंजर बदलते हैं 
कर्म बदलते हैं ।
पर दशा बदलता है, अज्ञात न्याय 
जिसे कहते हैं 
देर है अंधेर नहीं।

इसलिए दुष्ट की मक्कारी में 
मुफ्त में न ले भागीदारी
बलशाली के अन्याय पर
न कर वाहवाही ।
सिर्फ मसले को देख, समझ
और कह, सब ऊपर वाला जानता है ।
और कर इंतजार
एक समय आएगा
जब मसले का हल आयेगा
उस दिन दिल से निकलेगा
वाह!
भगवान के घर में 
देर है अंधेर नहीं।

....... मिलाप सिंह भरमौरी





Sunday, 2 November 2025

ansu

लगते हैं अभिनय जैसे 
आंसू को पहचाने कैसे।

मौका देख उतर आते हैं 
पता नहीं कहां से कैसे ।

फर्क ढूंढते फिरते हैं कुछ 
मेरे नहीं है तेरे जैसे ।

स्वार्थ से न बांध इन्हें 
रहने दे इन्हें जैसे के तैसे।

.........मिलाप सिंह भरमौरी





Friday, 11 July 2025

सच

कह रे मन
तुझे
निराशा क्या है 
झूठ होगा नजरों में उनकी
पर सच की परिभाषा क्या है ।

खुद को जो
रस दे क्या वो सच है 
लोग जिसे समझे क्या वो सच है 
सफाई से जो झूठ कहे
क्या वो सच है 
कुटिल रास्ते से 
कुछ पाने की आशा क्या है 
कह रे मन
सच की परिभाषा क्या है।

......मिलाप सिंह भरमौरी

Thursday, 13 February 2025

तलाक

क्या पाया तुम दोनों ने 
इक दूजे से फर्क बनाकर ।
रख दी स्वर्ग सी दुनियां अपनी
नर्क बनाकर।
बयालीस के तुम हो चुके
चालीस की वो भी हो गई होगी
न साथ हुआ तुम दोनों का न तलाक 
गलतियां क्या थी अब तो
कुछ समझ आ रही होगी।

असल में गलत तुम भी नहीं थे
और गलत वो भी नहीं थी
गलत न तेरे बारे सुना न उसके बारे में 
बस दोनों के बीच एक अकड़ जमी थी।

क्या ऊबते नहीं हो 
अब भी इस मशीन सी जिंदगी से 
रोज काम पर जाओ
और रात को अकेले आकर सो जाओ।
महीने के शुरू में गुजारा भत्ता उसे दे आओ।
कभी तो दिल करता होगा तुम दोनों का
आपस में बात करने का।
आखिर क्या वजह रही इस हालात की
कुछ समझने की।

कभी सोचा है 
कौन बीच में आया तुम दोनों के 
विवाद सुलझाने के लिए।
कभी सोचा है भूमिका किस किस की रही
रिश्तों में आग लगाने की।
इसलिए कहते हैं पढ़ें लिखे सब समझदार नहीं होते हैं 
कुछ लोग बिना आंसुओं के भी रोते हैं।

चलो देखते हैं हम भी
कौन आता है तेरा अपना तेरे पास
जब कुछ भी तेरे पास नहीं होगा।
न पैसा न शरीर की ताकत।
कौन संभालता है तुमको 
देखें जब हो जाए ईश्वर न करे 
तेरी ऐसी हालत।

और देखते हैं तेरे मायके वालों को भी
जब तुम मना कर दो लेने से गुजारा भत्ता।
कुछ महीनों में भूल जायेंगे वो भी
जो तुमको पढ़ाने के लिए लगा रखा है उन्होंने रट्टा।
नजरें बदल जाएंगी और सुझाव भी।
ठंडी हो जाएगी वो आग भी।
जो लगा रखी है तुम दोनों के जीवन में।


आधी उम्र तो गई
लेकिन आधी अभी भी बाकी है 
इसलिए गिर जाओ इक दूजे के पैरों में झुक कर
अगर जीवन सार्थक करना है 
अकड़ कर अगर ऐसे ही खड़े रहे 
तो समझ लो 
कुछ नहीं तुम्हारा बनना है।
इक दूजे का सम्मान करो
और जो अलग रहने की सलाह देते हैं 
उनसे बचकर रहो।
अगर फिर भी अच्छा लगता है 
तो दूसरों के लिए 
ऐसे ही पैसा कमाने की मशीन बने रहो।

....मिलाप सिंह भरमौरी।