milap singh

milap singh

Thursday 10 January 2013

सोचते-सोचते उहीं




सोचते-सोचते उहीं दिन गुजर जायेगा
दिन गुजर गया तो नही फिर आयगा

सम्भाल के रखो इस वक्त के आईने को
कुछ न हाथ आएगा गर बिखर जायेगा

हश्र क्या हो नराजगी से पता नही पर
रहम से उसके हाँ जीवन संबर जायेगा

एहतियात में बुराई क्या 'अक्स' अगर
जरा- सी गौर से कुछ निखर जायेगा


मिलाप सिंह



1 comment:

  1. हश्र क्या हो नराजगी से पता नही पर
    रहम से उसके हाँ जीवन संबर जायेगा

    achha hain , mubarak ho .....

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