milap singh

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Wednesday 14 January 2015

Dekh parakh

देख परख कर के दुनिया में
कदम रखने होते हैं

यूंही जज्बाती नहीं होते
यह कुछ ढकने होते हैं

जुबां की कही को तो
कोई भी समझ लेता है

पर खामोशी को समझ ले जो
वही अपने होते हैँ

------ मिलाप सिंह भरमौरी

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