milap singh

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Monday 25 August 2014

रुह तक


हर पल तुझे सोचता रहता हूँ
मेरी धडकनो में समा गई है तू

हर कहीं तुझको ही देखता हूँ
मेरे जिस्मो जां में छा गई है तू

अब तुम्हें पा लूं या नहीं पा लूं
कुछ फर्क नहीं पडता है मुझे

तन को छू कर मन से मेरे अब
जर्रे जर्रे रुह तक आ गई है तू

------- मिलाप सिंह भरमौरी

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